हर मूरत
हर सूरत
तू ही तू
हर घडी
हर पल
तू ही तू
हर ख्याल
हर जज्बात
तू ही तू
हर दिन
हर शाम
तू ही तू
हर सांस
हर धड़कन
तू ही तू
हर शब्द
हर लफ्ज
तू ही तू
हर अहसास
हर ख़ुशी
तू ही तू
हर राह
हर मंजिल
तू ही तू
हर ख़ामोशी
हर ठहराव
तू ही तू
मैं जिस्म
तू रूह
तू ही तू
-पवन अरोड़ा-
jindadili jindgi ki aaj hai kal nahi hongi to yaadey kuch palo ko utaar dalta hun shbdo mai pata nahi kyun ....padhey v ray dai
Wednesday, October 27, 2010
क्या तेरे पास एक पल का साथ नहीं
तुझसे दूर नहीं पर तेरे पास नहीं
जो मुझे क्या वह तुझे अहसास नहीं
खुद से क्यूँ हारने लगा हूँ मै
क्या तुझे खो जाने का अभास तो नहीं
जीना है मुझे संग तेरे
क्या तेरे पास एक पल का साथ नहीं
खींचती है मुझे तेरी चाहत की खुशबू
क्या तुम मेरे जज्बात ख्य्लात तो नहीं
________पवन अरोड़ा_________
जो मुझे क्या वह तुझे अहसास नहीं
खुद से क्यूँ हारने लगा हूँ मै
क्या तुझे खो जाने का अभास तो नहीं
जीना है मुझे संग तेरे
क्या तेरे पास एक पल का साथ नहीं
खींचती है मुझे तेरी चाहत की खुशबू
क्या तुम मेरे जज्बात ख्य्लात तो नहीं
________पवन अरोड़ा_________
Tuesday, September 28, 2010
धर्मो के यह रहनुमा
बाँट दिया इंसान को
बाँट दिया ईमान को
धर्म के टेकेदारो ने
बाँट दिया भगवान को
इन्ही से है इनकी रोटिया सिकती
जब भी देखा कुर्सी खिसकती
तभी नारा लगा डालते
धर्म की आग जला डालते
पिस्ता आम इंसान यहाँ
इनका तब ईमान कहाँ
जलता गरीबो का घर
किनको किसी ना डर
आप बेटे टीवी पर
मजे लेते हम देख लड़
खुश होते पीट-पीट ताली
यह वार जो न जाता कभी खाली
धर्मो के यह रहनुमा खुद को बतलाते
कभी देखा किसी मस्जिद पर
या मंदिर रोज जाते
खूब उड़ाते मोज बहार
लगाता अपने घर के बाहर
खाकी के यह चोंकिदार
मिलने जब भी हम जाते
यह नहीं आता कभी बाहर
शक्ल दिखती पांच साल मे एक बार
अब तुम भी बनो थोडा समझदार
छोड़ो आपसी यह रंजिश
थोडा धर्मो से आओ बाहर
गले मिलो सब एक हो
चाहे हो ईद या दीपावली का त्योहार
दो दिन की जिन्दगी
आओ हम हँस मिल साथ बिताये यार
~~~~पवन अरोड़ा~
बाँट दिया ईमान को
धर्म के टेकेदारो ने
बाँट दिया भगवान को
इन्ही से है इनकी रोटिया सिकती
जब भी देखा कुर्सी खिसकती
तभी नारा लगा डालते
धर्म की आग जला डालते
पिस्ता आम इंसान यहाँ
इनका तब ईमान कहाँ
जलता गरीबो का घर
किनको किसी ना डर
आप बेटे टीवी पर
मजे लेते हम देख लड़
खुश होते पीट-पीट ताली
यह वार जो न जाता कभी खाली
धर्मो के यह रहनुमा खुद को बतलाते
कभी देखा किसी मस्जिद पर
या मंदिर रोज जाते
खूब उड़ाते मोज बहार
लगाता अपने घर के बाहर
खाकी के यह चोंकिदार
मिलने जब भी हम जाते
यह नहीं आता कभी बाहर
शक्ल दिखती पांच साल मे एक बार
अब तुम भी बनो थोडा समझदार
छोड़ो आपसी यह रंजिश
थोडा धर्मो से आओ बाहर
गले मिलो सब एक हो
चाहे हो ईद या दीपावली का त्योहार
दो दिन की जिन्दगी
आओ हम हँस मिल साथ बिताये यार
~~~~पवन अरोड़ा~
Thursday, September 23, 2010
किसने देखा अल्लाह किसने देखा राम
मानो ना मानो मेरे भाई
लहू का रंग एक जैसा
सबका मालिक एक
किसने देखा अल्लाह
किसने देखा राम
मत बांटो धर्मो को
मत बांटो ईमान
जिन्दगी दी जिसने
क्या वो कहता
ऐसे करो काम
बंदगी उसी की अमन
मत दो दंगो का नाम
......
मेरे अल्लाह अल्लाह अल्लाह
मेरे राम राम राम
ऐसे मत बोलो
जागो जागो जागो
अँधेरे से निकलो
जब जागो सवेरा
फैलाओ यह पैगाम
तेरा अल्लाह मेरा अल्लाह
मेरे राम तेरे राम
सबका मालिक एक
जीवन दिया इसी का
इसी का यह पैगाम
चैन से रहो
चैन से रहने दो
यह कहते अल्लाह
यह कहते राम
~~~पवन अरोड़ा~~~23-9-2010
लहू का रंग एक जैसा
सबका मालिक एक
किसने देखा अल्लाह
किसने देखा राम
मत बांटो धर्मो को
मत बांटो ईमान
जिन्दगी दी जिसने
क्या वो कहता
ऐसे करो काम
बंदगी उसी की अमन
मत दो दंगो का नाम
......
मेरे अल्लाह अल्लाह अल्लाह
मेरे राम राम राम
ऐसे मत बोलो
जागो जागो जागो
अँधेरे से निकलो
जब जागो सवेरा
फैलाओ यह पैगाम
तेरा अल्लाह मेरा अल्लाह
मेरे राम तेरे राम
सबका मालिक एक
जीवन दिया इसी का
इसी का यह पैगाम
चैन से रहो
चैन से रहने दो
यह कहते अल्लाह
यह कहते राम
~~~पवन अरोड़ा~~~23-9-2010
Wednesday, September 22, 2010
तो डस जाएगा
]सोने की चिड़िया
संस्कृति संस्कार की पीढ़ी
मेहमानों का सत्कार
क्या नहीं है मेरे देश मे यार
माटी की खुशबु
बड़ो का आशीर्वाद
भषाओ की माला
जहाँ हर माँ ने जिगर का टुकड़ा
दिल से लगा पाला
उस देश को खा गया
यह नेता साला
भर अपनी जेब मुह कर काला
फिर भी दीखाता अपना मन उजहला
खेलो मे भी खेल रच डाला
भरा अपना पैसो का थ्येला
विपदा को भी इन्होने खूब सम्भाला
पैसा भर तिजोरी को लगा ताला
खेल रहे बाडरो का खेल
सिवस बैंक का पता नहीं क्या है मेल
इश्वरभी इनके आगे फ़ैल
खूब मौज जब जाते यह जेल
कब तक आखिर कब तक
नहीं उठाते हम क्यूँ आवाज
हमारी ही जमी पर यह क्यूँ
फन फैलाये बेठायह नेता रूपी नाग
अरे मेरे भाई अब तो जाग नहीं
तो डस जाएगा
एक दिन यह नेता रूपी नाग
~~~पवन अरोड़ा~~~
संस्कृति संस्कार की पीढ़ी
मेहमानों का सत्कार
क्या नहीं है मेरे देश मे यार
माटी की खुशबु
बड़ो का आशीर्वाद
भषाओ की माला
जहाँ हर माँ ने जिगर का टुकड़ा
दिल से लगा पाला
उस देश को खा गया
यह नेता साला
भर अपनी जेब मुह कर काला
फिर भी दीखाता अपना मन उजहला
खेलो मे भी खेल रच डाला
भरा अपना पैसो का थ्येला
विपदा को भी इन्होने खूब सम्भाला
पैसा भर तिजोरी को लगा ताला
खेल रहे बाडरो का खेल
सिवस बैंक का पता नहीं क्या है मेल
इश्वरभी इनके आगे फ़ैल
खूब मौज जब जाते यह जेल
कब तक आखिर कब तक
नहीं उठाते हम क्यूँ आवाज
हमारी ही जमी पर यह क्यूँ
फन फैलाये बेठायह नेता रूपी नाग
अरे मेरे भाई अब तो जाग नहीं
तो डस जाएगा
एक दिन यह नेता रूपी नाग
~~~पवन अरोड़ा~~~
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