Sunday, May 10, 2009

~~~~बादल~~~~~


तुम

मैं तलाशता हूँ तुम्हे मंजिल की तरह
छुप जाती हो देखते ही बादलो की तरह
क्या मैं तुम्हे पकड नहीं पाऊंगा
दिल की बात किसे बताऊंगा
जमाने वाले हसेंगे
मुझ पर कोई बात नहीं
क्या हुआ मैं दीवाना कहलाऊंगा
मेरे दीवाने पन का इम्तहान ना ले
तुझे क्या पता मैं कई रातो से नहीं सोया
तेरा चेहरा जो आँखों मैं बसा था
तुम्ही हो वो कल्पना
जिसे मन मे था संजो रखा
मेरे ह्रदय की तारो को झंकृत करने वाली मधुर संगीत हो तुम
मेरे खोये हुवे शब्दों की मोतियों की माला हो तुम
मैं तुम्हे इस जीवन रूपी माला मे पिरोना चाहता हूँ
मैं जमी से आसमान को छुना चाहता हूँ
मैं भी 'पवन' तेरे संग बादलो मैं खोना चाहता हूँ

~~~~~~पवन अरोडा~~~~~~~~~

~~~~तुम~~~~~


तुम मुझे क्यूँ
अपने होने का एह्स्सास दिलाती हो
क्यूँ तुम चोरी चोरी
मेरे सपनो मे आती हो
तुम एह्स्सास हो मेरा
मेरे आस पास हो तुम
तुम्हे पाना मेरा सपना नहीं जिन्दगी है
तुम मेरी कल्पना नहीं हक्कीत हो
तुम तुम नहीं मेरी साँसे हो
इन आँखों की रौशनी हो तुम
मेरे दिल की धड़कन
फिजाओं मैं फैली खुशबू हो तुम
तेरी एक एक अदा मुझे अच्छी लगती है
जब जुल्फों को तुम इतरा के पीछे करती हो
ऐसा लगता है चाँद जो छुपा था
बादलो मैं निकल आया
मुस्कराने से तेरे
सूरज की तरह चमक उठता है मेरा जहां
तुम्हे पाना रब को पाना है
तुम्हे साथ ले इस जहाँ से दूर चले जाना है
जहाँ तुम और मैं
एक नया आशियाना बनायेंगे
अपनी प्यार भरी छोटी सी दुनिया बसायेंगे
~~~~~~पवन अरोडा~~~~~~~~

~~~~आस्था~~~~~


~~~आस्था~~~~
किसने देखा
तुमने देखा
कहाँ है भगवान
बताओ मुझे
मिलाओ मुझे
विस्वाश की डोर
आस्था का प्रतीक
भगवान कभी मिला
सपने मैं कल्पनाओं मैं
छोड़ कभी हक्कीत मे
मैंने भी खूब तलाशा
पथतरो मे पाने की
कोशिश की
जगाने की कोशिश की
चिल्लाया पर वह न मिला
न जगा न बोला
आस्था सदियों से चलती आ रही है
मैं भी उसी आस्था से जुडा
उसे खोजता कभी नहीं
मेरे सुख दुःख मे खडा पाया
विस्वास सभी उसी की मर्जी
जो होगा अच्छा होगा
सत्य इसे से दूर
आस्था या डर रोकता
विद्रोह की भावना
क्यूँ किस का डर
जब न देखा न मिला
फिर क्यूँ आस्था
क्यूँ पूजा
सदियों की परम्परा
कब तक निभाऊंगा
क्या अंतिम साँसों तक
खोज नहीं पाऊंगा
राम राम करता
यूँ ही चला जाऊँगा
~~~पवन अरोडा~~~
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~~~~माँ~~~~


माँ

माँ माँ शब्दों की मोहताज़ नहीं
एक एह्स्सास है
माँ ठंडी छाँव मे सुलाती
आँचल दे आप धुप मे बेठी
मुझे धुप ना लगने देती
जन्म से पहले कोख मे रख
ठंडक देती माँ
क्या माँ मे तेरा ऋण उतार पाऊंगा
माँ तुने कोख मैं रखा
क्या मे तुझे साथ भी रख पाऊंगा
माँ माँ तू जननी मेरी
पहचान मेरी
क्या तेरी पहचान बन पाऊंगा
माँ तुमने सीचते सीचते पाला माली की तरह
क्या मैं तुम्हे ठंडी छाँव पहुचाहूँगा
कदम कदम बढ़ता देख
बचपन से जवानी मे पाले कई सपने तुने
क्या मे पूरा कर पाऊंगा
तेरा प्रेम निस्वार्थ
क्या मे स्वार्थ मे भी प्रेम कर पाऊंगा
माँ नहीं मैं तेरा ऋण ना चुका पाऊंगा
इस जन्म मे क्या मैं भी 'पवन' श्रवन बन पाऊंगा


पवन अरोडा

Thursday, May 7, 2009

~~एक कदम~~~


अब यह तनहँइंया काटती है मुझे
रात भर जागाती है मुझे
तुम आती तो हो मगर
साथ अपने खामोशी का दायरा लिए
तुम्हे खामोश देख
मैं भी बिन शब्दों के हो जाता हूँ
तुम्हारे साथ आये
उस खामोशी के दायरे मैं खो जाता हूँ
मुझे कहना तुमसे खुद को पाना होगा
कानो मे तेरे अपने प्यार का गीत सुना
तुझे हाले-दिल बताना होगा
दिल की धड़कन बन तुम्हारी
सांसो मैं उतर जाना होगा
आँखों मे मेरी लिखि भाषा
प्यार की पढ़
खामोशी को भगाना होगा
सपना नहीं हक्कीत हो तुम
पतझड़ नहीं बहार हो तुम
जीवन मे बस महकाना होगा
टूटे यह खामोशी का दायरा
एक कदम तुझे भी बढाना होगा
~~~~~पवन अरोडा~~~~~