Wednesday, January 7, 2009

***फिर क्यूँ***


इंतज़ार ......
तेरा क्यूँ दोस्त ऐसा क्यूँ
तेरा इंतजार सुबह शाम
पल पल तेरी ही सोच क्यूँ
ख़ुशी से पुछ किसने दिया पता मेरा तुझे
उमंगो से पुछ किसने जगाया तुझे
पंछी बन क्यूँ उड़ने की चाहत तुझे
आना है एक दिन फिर तुझे
आसमान से वापिस जमी पर
फिर यह उडान क्यूँ
सोच टहरता रुकता खुद पर
आगे बढती चाहत उमंगें ....
यह क्यूँ
मैं खुद से खुद को हारा तुझे जीत
यह कैसी दिल की दिल से प्रीत
यह कैसा मन गाये गीत
ना मे तेरा ना तू मेरी ....
फिर क्यूँ लगे जीत ...
~~~~पवन अरोडा~~~~

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