jindadili jindgi ki aaj hai kal nahi hongi to yaadey kuch palo ko utaar dalta hun shbdo mai pata nahi kyun ....padhey v ray dai
Thursday, January 15, 2009
जीना क्या ...
सोच कभी ...
सोचा तो ...
समझा कभी ..
समझा तो ...
पढ़ा कभी ...
पढ़ा तो ...
जिया कभी ....
क्या रूप है ...
क्या अस्तित्व है ....
क्या ढंग है .....
किस रूप मे जी रहो हो .....
कैसे जी रहो हो ..
क्यूँ ढूंड रहे हो अपने आपको .......
क्या जज्बात है ...
क्या ख्य्लात है ......
कितनी जिन्दगी के और बरस आप के पास है .....
जीना है तो जी बिंदास ...
कुछ अलग तो कुछ खास .....
कुछ भी ना हो समझ ....
सब कुछ है पास .....
आज नहीं जियेगा .......
तो कल का क्या पता .....
वही चार कन्दे.....
कुछ बंदे........
राम नाम बोलेंगे ....
उठा के कुछ पल के लिए रो लेंगे ....
डाल के लकडी ....
फूँक देंगे ....
घर आयेंगे ...
कुछ खायेंगे ...
कुछ चले जायेंगे ....
फिर कुछ दिनों बाद तेरी हडियों को उठा फूल बोल सब को दिखायगे ...
और फिर गंगा मे परवाह वक़्त ....
घर के अंदर नहीं बहारसे ही ले जायंगे .....
कुछ दिनों ही तेरे नाम कि एक शोक शभा बिठा य्न्गे ....
कुछ आयंगे ...
कुछ खायंगे ...
फिर चले जायेंगे ...
फिर तू ही बता ...
तुझे क्या पता ....
कौन आया ..
कौन गया ....
तो जी ......मस्त
~~~~~पवन अरोडा~~~~~~~
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