Tuesday, January 6, 2009

लम्हा लम्हा


लम्हा लम्हा
पकडो पढो समझो जिन्दगी
आगे और ना निकल जाए जिन्दगी
खोज सोच क्या है जिन्दगी
अब निकली फिर क्या आएगी जिन्दगी
मानव जन्म नहीं मिलता हर बार
जो मिली एक बार उसे सम्भाल जिन्दगी
कभी मिले देखे किनारे नदी के आपस मे
यह समझ क्या है जिन्दगी .......
खुशियों की बरात हो ना हो
फिर भी बहुत सोगात है जिन्दगी ..
बनाया जिसने उसने भी खुछ सोच दिया होगा
मानव का रूप जिन्दगी हाथ उठा करता है
जिसकी तू बंदगी मत भूल
यह उसी की ही है सोगात जिन्दगी
कर ऐसा कर्म जिसपे मुस्कराए जिन्दगी
लम्हा लम्हा प्यार का बन जाए जिन्दगी
~~~पवन अरोडा~~~~~

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